मुंबई : मुंबई बम धमाका 1993 के दोषी याकूब मेमन की फांसी 30 जुलाई को निर्धारित थी, लेकिन फांसी से बचने के लिए अभी भी वह प्रयासरत है. हालांकि राष्ट्रपति भी उसकी दया याचिका को खारिज कर चुके हैं, इसी बीच एक ऐसी खबर आयी हैजो याकूब मेमन को फांसी देने के फैसले पर सवाल पैदा करती है. आज रीडीएफ डॉट कॉम ने एक लेख प्रकाशित किया है, जिसे वर्ष 2007 में रॉके पूर्व अधिकारी बी रमन ने लिखा था, लेकिन उसका प्रकाशन अब जाकर हुआ है. बी रमन ने अपने लेख में लिखा है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि याकूब मेमन मुंबई बम धमाकेका दोषी था, लेकिन जिस तरह उसने आत्मसर्मपण किया और जांच में सहयोग किया, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि उसे फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए.
रीडिफ डॉट कॉम ने आज यह आलेख बी रमन के भाई से इजाजत लेकर प्रकाशित किया है. जिस वक्त याकूब मेमन को भारत लाया गया उस वक्त बी रमन रॉ की पाकिस्तान डेस्क के प्रमुख थे. वर्ष 2007 में शीला भट्ट नाम की पत्रकार ने याकूब मेमन पर दो पार्ट में स्टोरी की थी, जिसके एक पार्ट को लिखने से पहले उन्होंने बी रमन का साक्षात्कार करना चाहा और उसने यह गुजारिश की कि वे याकूब मेमन से जुड़ी उन तमाम तथ्यों को सामने लायें, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हो सकी है.
बी रमन इस बात के लिए तैया र हो गये. वे याकूब मेमन को भारत लाने वाली एजेंसी में की पर्सन के तौर पर काम कर रहेथे. मेमन को भारत वापस लाने में जब सफलता मिली तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने काफी प्रसन्नता जतायी थी. याकूब मेमन की भारत वापसी के कुछ ही दिनों बाद बी रमन 31 अगस्त 1994 को रिटायर हो गये.  याकूब मेमन का दावा है कि वह अपने दम पर 19 जुलाई 1994 को भारत आया लेकिन सीबीआई ने पांच अगस्त 1994 को उसे गिरफ्तार बताया. रॉ अधिकारी बी रमन इस बात से वाकिफ थे.
बी रमन का देहांत वर्ष 2013 में 16 जून को हो गया. वे रीडिफ डॉट कॉम के नियमित स्तंभकार थे. इसलिए वे वर्ष 2007 में याकूब मेमन से जुड़े तथ्यों को उजागर करने के तैयार हो गये थे. जब याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनायी गयी थी, तो बी रमन दुखी थे. उन्होंने पत्रकार शीला को बुलाया और याकूब से जुड़े तथ्यों को उजागर करने के लिए तैयार हो गये, क्योंकि उनकी नजर में कानून द्वारा याकूब को फांसी देना गलत था.
बी रमन ने सारे तथ्यों को पहली बार पत्रकार के पास प्रकाशन के लिए भेज तो दिया, लेकिन वे इसे प्रकाशित करने में संकोच कर रहेथे, क्योंकि मामला अदालत में था. लेकिन फिर उन्होंने पत्रकार को फोन कर आलेख प्रकाशित करने को कहा. उनका मानना था कि कोई देश तभी सम्मान पा सकता है जब वह अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करता है. वे मानते थे कि एक संप्रभु राष्ट्र के संप्रभु अधिकारियों द्वारा किया गया वादा निगोसियेबल नहीं होता है. वह भी तब जब वादा याकूब मेमन जैसे व्यक्ति के साथ किया गया हो. मेमन कहीं से भी हमारी सहानुभूति का अधिकारी नहीं था.
याकूब मेमन ने जांच एजेंसियों काफी सहयोग किया था, उसने जांच करने वाली एजेंसी को यह बताया कि उसके परिवार के अन्य लोग कहां छुपेहैंऔर उन्हें वापस लाने में मदद किया. उन्होंने लिखा है कि इसमें कोईसंदेह नहीं है कि याकूब मेमन और उसका परिवार मुंबई बम धमाके में शामिल था, लेकिन जिस तरह का सहयोग उसने जांच एजेंसियों के साथ किया, उसके बाद उसे मौत की सजा देने पर पुनर्विचार किया जा सकता है.
असदुद्दीन ओवैसी और अबूआजमी के किया फांसी का विरोध
याकूब मेमन को फांसी दिये जाने का एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी और सपा नेता अबु आजमी ने विरोध किया है. ओवैसी का कहना है कि अगर याकूब मेमन दहशतगर्द है, तो कई और लोग भी हैंजो दहशतगर्द हैं, तो उन्हें फांसी क्यों नहीं दी जा रही है. धर्म के नाम पर यह भेदभाव क्यों? वहीं सपा नेता अबु आजमी का कहना है कि टाइगर मेमन के भाई याकूब मेमन ने आत्मसमर्पण किया. जांच में पूरा सहयोग किया, ऐसे में उसे फांसी देना सही नहीं होगा.