Tuesday 21 July 2015

‘राष्ट्रीय उजाला’ एक्सक्लूसिव- हर साल गायब होते हैं एक लाख बच्चे : एनसीआरबी

-निठारी पार्ट–2 के रूप में सामने आया सीरियल रेपिस्ट रविंद्र
-बच्चों के गायब होने की शिकायतों पर गौर नहीं करती पुलिस
-‘भैंस’ और ‘कुत्ता’ खोजने में ज्यादा सक्रियता दिखाती है पुलिस
विभूति कुमार रस्तोगी
नई दिल्ली। सीरियल रेपिस्ट और हत्यारोपी रविंद्र देश का दूसरा सुरेंद्र कोली है। यानि रविंद्र को आप निठारी पार्ट-2 के तौर पर देख सकते हैं। जिस प्रकार नोएडा के निठारी गांव के मकान में सुरेंद्र कोली ने एक के बाद एक वर्षों तक मासूम बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाकर मारता रहा, ठीक उसी प्रकार से 9 साल बाद एक बार फिर देश के लोगों को निठारी कांड की याद जेहन में ताजा हो गई। निठारी कांड हो या फिर अभी रविंद्र कांड, सब में बच्चे और बच्चियां एक के बाद एक गायब होते रहे, लेकिन दर्जनों शिकायत के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। निठारी कांड उजागर होने के बाद मां-बाप को अपने बच्चे की मौत की जानकारी मिली, तो अब रविंद्र के गिरफ्तार होने के बाद ऐसे दर्जनों मां-बाप का दिल फट पड़ा, जिन्होंने अपने बच्चे के गुम होने की शिकायत पुलिस में दर्ज करवाई थी। मतलब यहां भी साफ है कि अब उनके बच्चे भी कभी लौट के नहीं आएंगे। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने बच्चों की गुमशुदगी की शिकायतों पर गौर क्यों नहीं किया। अगर पुलिस बच्चों के गायब होने पर मां-बाप की शिकायतों पर तत्परता दिखाती, तो शायद कुछ बच्चे मौत के गाल में समाने से बच सकते थे। लेकिन पुलिस को वीआईपी की शिकायतों के अलग और आम आदमी की शिकायतों पर गौर करने की फुर्सत ही कहां है। यूपी के कद्दावर मंत्री आजम खान की भैंस जब गायब हुई, तो पुलिस-प्रशासन का सारा अमला खोजबीन में जुट गया और खोज निकाला। दिल्ली पुलिस कमिश्नर रहे वाईएस डडवाल का कुत्ता गायब हुआ था, तो किस प्रकार पूरी दिल्ली पुलिस डडवाल के कुत्ते को खोजने में जुट गई थी और जल्द कुत्ता भी मिल गया। लेकिन भैंस और कुत्ते जैसा नसीब उन बच्चों को कहां जो गरीब घर में पैदा हुए थे।
नेशनल रिकार्ड क्राइम ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो दिल दहल देने वाले नतीजे सामने आते हैं। हर साल देश भर से करीब 1 लाख बच्चे (लड़का-लड़की) गायब हो जाते हैं। कोई अपने घर के बाहर खेलते हुए उठा लिया जाता है, तो कोई स्कूल के आते-जाते वक्त। हर मामले में मां-बाप भाग कर थाने इस उम्मीद में जाते हैं कि शायद पुलिस तुरंत हरकत में आकर बच्चा खोज दे। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली की स्मार्ट पुलिस हो या बिहार, यूपी सहित देश के सभी राज्यों की पुलिस, सबका रवैया कमोवेश एक जैसा ही होता है। टालमटोल के कारण बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं।
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि गायब हुए बच्चों में महज 30 से 40 फीसदी ही नसीब वाले होते हैं जो पुलिस, एनजीओ या किसी अन्य मदद से मिल जाते हैं। यानि हर साल 50 से 60 हजार बच्चे घर कभी भी लौट कर नहीं आते हैं।
निठारी गांव के लोगों ने भी बच्चों के गायब होने की शिकायत थाने में की, लेकिन पुलिस सभी शिकायतों को कूड़े के डिब्बे में फेंक दी थी। जब गांव वालों ने ही मामला पकड़ा, तो दिल दहला देने वाला अपराध सामने आया। सुरेंद्र कोली एक नर पिशाच की तरह बच्चों के साथ सेक्स करके मार डालता था। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि 9 साल बाद भी उसे आज तक फांसी पर नहीं लटकाया जा सका। अभी सुरेंद्र को फांसी भी नहीं हुई है कि इसी बीच निठारी पार्ट-2 भी सामने आ गया।
एक नज़र
डीयू के मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर नवीन कुमार का साफ तौर पर कहना है कि निठारी कांड, रविंद्र कांड सहित जघन्य बलात्कार कांड, देशद्रोह कांड, बम ब्लास्ट कांड में आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा होने के साथ दोषियों को फांसी पर चढ़ा दिया जाना चाहिए। अपराध का डर तभी होता है जब सजा पर त्वरित ऐक्शन लिया जाता है। नहीं तो हर अपराधी डर के वातावरण से बाहर ही रहेगा। उन्होंने कहा कि यह एक मनौवैज्ञानिक पहलू है कि जब तक आप डर पैदा नहीं करेंगे, तब तक अच्छे रिजल्ट अपराध की रोकथाम के मामले में सामने नहीं आएंगे।

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